जन-विचारविविध

गुँथौ हो मालिन माई बर फूल-गजरा…

चम्मास के गहिर बरसा के थोर सुरताए के पाछू जब हरियर धनहा म नवा-नेवरनीन कस ठाढ़े धान के गरभ ले नान-नान सोनहा फूली कस अन्नपुरना के लरी किसान के उमंग संग झूमे लागथे, तब जगत जननी के परब नवरात के रूप म घर-घर, पारा-पारा, बस्ती-बस्ती जगमग जोत संग जगमगाए लागथे।

नवरात माने शक्ति के उपासना पर्व। शक्ति जे भक्ति ले मिलथे। छत्तीसगढ़ आदि काल ले भक्ति के माध्यम ले शक्ति के उपासना करत चले आवत हे। काबर के ये भुइयाँ के संस्कृति ह बूढ़ादेव के रूप म शिव अउ शिव-परिवार के संस्कृति आय जेमा माता (शक्ति) के महत्वपूर्ण स्थान हे। वइसे तो नवरात मनाए के संबंध म अबड़ अकन कथा आने-आने ग्रंथ के माध्यम ले प्रचलित हे, फेर इहाँ के जे लोक आस्था हे वोकर मुताबिक एला भगवान भोलेनाथ के पत्नी सती अउ पारबती के जन्मोत्सव के रूप म मनाए जाथे।

दुनिया म जतका भी देवी-देवता हें उँकर जयंती के परब ल साल भर म एके पइत मनाए जाथे, फेर नवरात्र एकमात्र अइसन परब आय जेला बछर भर म दू पइत मनाए जाथे। काबर ते माता (शक्ति) के अवतरण दू अलग-अलग पइत दू अलग-अलग नॉव अउ रूप म होए हे। पहिली पइत उन सती के रूप में दक्षराज के घर आए रिहीन हें, फेर अपन पिता दक्षराज के द्वारा आयोजित महायज्ञ म भोलेनाथ ल नइ नेउत के वोकर अपमान करे गीस त सती ह उही यज्ञ के कुंड म कूद के आत्मदाह कर लिए रिहीसे।

ए घटना के बाद भोलेनाथ वैराग्य के अवस्था म आके एकांतवास के जीवन जीए बर लगगे रिहीसे, फेर बाद म राक्षस ताड़कासुर के उत्पात ले मुक्ति खातिर देवता मन वोकर संहार खातिर शिवपुत्र के जरूरत महसूस करीन। तब शिवजी ल माता पारबती, जेन हिमालय राज के घर जनम ले डारे रिहीन हे तेकर संग बिहाव करे के अरजी करीन। पारवती ह माता सती जेन शिवजी के पहिली पत्नी रिहीसे वोकरे पुनरजनम (दुसरइया जनम) आय। एकरे सेती हमर इहाँ माता (शक्ति) के साल म दू पइत जन्मोत्सव के परब ल नवरात के रूप म मनाए जाथे। संस्कृति के जानकार मन के कहना हे के सती के जनम ह चइत महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म होए रिहिसे अउ पारवती के जनम ह कुँवार महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म।

हमर छत्तीसगढ़ म नवरात म जँवारा बोए के रिवाज हे। लोगन अपन-अपन मनोकामना खातिर बदे बदना के सेती जँवारा बोथें, जेमा पूरा परिवार ल बर-बिहाव सरीख नेवता देथें। जँवारा बोवइ ह चइत महीना के नवरात म जादा होथे। कुँवार म शक्ति के उपासना के रूप म दुर्गा प्रतिमा स्थापित करे के चलन ह अभी बने बाढ़त हवय। इहू बखत माता के फुलवारी के रूप म जोत-जँवारा बोये जाथे। अइसने इहाँ जतका भी सिद्ध शक्ति पीठ हें उहू मनमा जोत-जँवारा जगाए जाथे।

नवरात के एकम ले लेके नवमी तक पूरा वातावरण म शक्ति उपासना के धूम रहिथे। हर देवी मंदिर, दुर्गा प्रतिमा स्थल अउ जँवारा बोए घर म जस गीत गूँजत रहिथे। जब सेउक मन गाथें-
माई बर फूल गजरा,
गुँथौं हो मालिन माई बर फूल गजरा।
चंपा फूल के गजरा, चमेली फूल के हार।
मोंगरा फूल के माथ मटुकिया, सोला ओ सिंगार।

त पूरा वातावरण में शक्ति के संचार हो जाथे। कतकों झन ल देवी घलोक चढ़ जाथे, फेर सोंटा, बोड़बोरा अउ बाना-साँग के दौर चलथे। जेकर जइसन शक्ति वोकर वइसन भक्ति। सरलग नौ दिन ले सेवा करे बाद दसमीं तिथि म माता जी के प्रतिमा के संगे-संग जँवारा के घलोक विसरजन कर दिए जाथे।

हमर छत्तीसगढ़ म ए दिन मितानी बदे के घलोक परंपरा हे। कतकों संगी-जउँरिहा मन जेकर मन के मया बाढ़ जथे, वो मन ए दिन जँवारा (मितान) घलोक बद लेथें।

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर

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