छत्तीसगढ़

Sukma News तना छेदक कीट ने धान की फसल को पहुंचाया नुकसान, किसान परेशान

वैज्ञानिकों ने दी विशेष सावधानी बरतने की सलाह

कृष्णा नायक

सुकमा। सुकमा जिले के विभिन्न हिस्सों में धान की फसल पर तना छेदक कीट का गंभीर हमला देखा जा रहा है। सुकमा कृषि विज्ञान केन्द्र के पौध रोग वैज्ञानिक राजेन्द्र प्रसाद कश्यप एवं कीट वैज्ञानिक डॉ. योगेश कुमार सिदार ने मुरतोंडा, नीलावरम, पाकेला, रामपुरम, पुजारीपाल, सोनाकुकानार सहित अन्य क्षेत्रों का भ्रमण कर किसानों को सतर्क किया। खेतों में कीट की अंडा, इल्ली, शंखी एवं तितली अवस्थाओं में उपस्थिति देखी गई है, जो सीधे फसल की बढ़वार और पैदावार पर प्रभाव डाल रही है।

तना छेदक कीट की इल्ली अवस्था सबसे अधिक नुकसान पहुँचाती है। यह पहले पत्तियों को खाती है और फिर तने में प्रवेश कर पौधे की वृद्धि रोक देती है। परिणामस्वरूप बीच का हिस्सा सूख जाता है जिसे ‘मृत गोभ’ कहा जाता है। साथ ही बालियों के समय यह कीट दानों के भराव को रोक देता है, जिससे सफेद बालियाँ बनती हैं और उत्पादन में भारी गिरावट आती है।

फसल बचाने के लिए वैज्ञानिकों की प्रमुख सलाह:-
1. रोपाई के समय सावधानी – पौधों के ऊपरी भाग को थोड़ा काटकर ही रोपाई करें।
2. खेत की सफाई – खेत और मेड़ों को खरपतवार मुक्त रखें।
3. संतुलित उर्वरक प्रबंधन – पोषक तत्वों का सही और संतुलित उपयोग करें।
4. नियमित निगरानी – समय-समय पर खेत की जांच करें और अंडों को नष्ट करें।
5. पक्षी मीनार का उपयोग – टी-आकार की मीनार लगाकर पक्षियों से कीट नियंत्रण करें।
6. फेरोमोन ट्रैप – नर तितलियों को आकर्षित कर नियंत्रण करें।
7. प्रकाश प्रपंच (लाइट ट्रैप) – रात में कीट पकड़ने के लिए लाइट ट्रैप लगाएँ।
8. मित्र कीटों का संरक्षण – मकड़ी, ड्रैगन फ्लाई, ततैया और पक्षियों को नुकसान न पहुँचाएँ।
9. जैविक नियंत्रण – ट्राइकोग्रामा जापोनिकम के अंडे प्रति हेक्टेयर 50,000 की दर से 2–3 बार छोड़ें।
10. नीम आधारित उत्पाद – नीम अजेडीरेक्टीन 1500 पीपीएम का 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
11. रासायनिक नियंत्रण (मौसम साफ होने पर ही करें) – क्लोरेंटानिलिप्रोल, क्लोरोपायरीफास, कर्टाफ हाइड्रोक्लोराइड, फ्लुबेडियामाइड आदि की अनुशंसित मात्रा में छिड़काव करें। यदि 15 दिन बाद असर न हो तो दूसरा कीटनाशक अपनाएँ।

महत्वपूर्ण अपील:

कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से आग्रह किया है कि बिना विशेषज्ञ सलाह के रसायनों का प्रयोग न करें। समय पर निगरानी और वैज्ञानिक उपाय अपनाकर फसल को भारी नुकसान से बचाया जा सकता है।

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